चैत्र मास अपने शुक्ल पक्ष की ओर अग्रसर है और शक्तिपर्व रामजन्म के आनंदोत्सव के साथ पूर्णता भी प्राप्त करेगा। लेकिन शक्ति पर्व के नौ अहोरात्र परम के स्वागत से पूर्व जिस सार्थकता को साधते हैं, वह यात्र भी है, मार्ग भी है और लक्ष्य भी है। श्रीरामचरितमानस में जनकनंदिनी मां सीता ने धनुष यज्ञ से पूर्व जगदंबा गौरी का पूजन करते हुए अद्भुत स्तुति की है :
न¨ह तव आदि मध्य अवसाना।
अमित प्रभाउ बेदु न¨ह जाना।।
भव भव बिभव पराभव कारिनि
बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।।
वे कहती हैं कि शक्ति स्वरूपा मां गौरी संसार की सृष्टि करती हैं, पालन भी करती हैं और प्रलय भी उनके अधीन है। वे जगत बंधनकारिणी, विश्व विमोहिनी भी हैं और परम स्वाधीन भी हैं और जब शक्ति का यह त्रिविध स्वरूप स्वावलंबन, स्वाधीनता और स्वाभिमान को भी साधता है तो देवी के स्वरूप न केवल आध्यात्मिक जीवन के मार्ग और लक्ष्य बनते हैं, वरन् भौतिक जगत के लिए भी प्रेरक बनते हैं।
दुर्गा देवी कवच पाठ में शक्ति के भिन्न-भिन्न स्वरूप, उनके वाहन और उनके अस्त्र-शस्त्र का अद्भुत वर्णन है। महाशक्ति शंख, चक्र, गदा, शक्ति, हल, मूसल, तोमर, खेटक, परशु, पाश, कुंत, त्रिशूल, धनुष आदि अनेक अस्त्र-शस्त्र धारण करती हैं और उनका उद्देश्य भक्तों और देवताओं की रक्षा करना है। अद्भुत बात यह है कि शक्ति के अस्त्र-शस्त्र में हल और मूसल भी शामिल हैं। सृष्टि, पालन और प्रलय करने वाली महाशक्ति खेतों को अन्न से परिपूर्ण करने के लिए हल भी चलाती हैं और मूसल लेकर धान भी कूटती हैं। यही हमारे ऋषि-चिंतन का शीर्ष है, जो देवी रूप में शक्ति की उपासना तो करता ही है, साथ ही साथ वह ग्राम्य बाला और गृहिणी में भी उसी शक्ति का स्वरूप देखकर उसे भी पूज्य बना देता है। स्त्री-तत्व कर्म अथवा धर्म के किसी भी क्षेत्र के किसी भी रूप में हो, भारतीय मनीषा ने उसे न केवल पूज्य माना है, वरन् समस्त कर्म और स्वावलंबन की प्रेरक शक्ति के रूप में भी स्वीकार किया है। इसीलिए वैदेही ने अपनी स्तुति में कहा ‘भव बिभव कारिनि’ अर्थात संसार का समस्त ऐश्वर्य तुमसे ही आरंभ होता है। साथ ही, कर्म और स्वावलंबन की प्रेरक शक्ति बनकर सृष्टि का पालन करने वाली महाशक्ति को जनक नंदिनी ने स्तुति करते हुए ‘स्वबस बिहारिनि’ भी कहा है तो यह उनमें स्थित परम स्वाधीनता की ही वंदना है।
वाराणसी के ख्यात ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि चैत्र नवरात्र दो अप्रैल से लग रहा है, जो पूरे नौ दिन चलेगा। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक की अवधि शक्ति की अधिष्ठात्री मां जगदंबा की साधना-आराधना को समर्पित रहेगा। इसे शास्त्रों में वासंतिक या चैत्र नवरात्र कहा गया है। ज्योतिष के अनुसार, इस बार कलश स्थापन के लिए मात्र 2.30 घंटे ही मिल रहे हैं। प्रात: सूर्योदय के बाद 5.52 बजे से 8.22 बजे तक कलश स्थापन का शुभ मुहूर्त है। इसके बाद वैधृति योग लग जा रहा है। इसमें घट स्थापन उचित नहीं है। सप्तमी युक्त अष्टमी महारात्रि में महानिशा पूजन आठ अप्रैल को किया जाएगा। महाअष्टमी व्रत नौ को और रामनवमी व महानवमी व्रत के साथ नवरात्र का होम-हवनादि 10 अप्रैल को किया जाएगा। नौ दिवसीय नवरात्र व्रत का पारण 11 अप्रैल को किया जाएगा।
परम स्वाधीन होकर यही महाशक्ति काली का रूप भी धारण करती हैं। यह रूप भयंकर है, लेकिन इसका उद्देश्य नकारात्मक शक्तियों का संहार करना है, इसीलिए मां कालरात्रि अथवा काली का एक नाम शुभंकारी भी है। इससे जुड़ी एक
रोचक कथा है, जो शक्ति उपासना के लिए किए जाने वाले दुर्गा सप्तशती के पाठ की भूमिका बनती है। प्राचीन काल में जब महाशक्ति ने काली का रूप धारण किया तो देवता भी भयभीत हो उठे। ब्रह्मा जी के साथ मिलकर उन्होंने शिव जी से प्रार्थना की और कहा कि वे महाशक्ति को सौम्य रूप में वापस लेकर आएं। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान शिव ने कहा कि उन्हें पुन: सौम्य रूप में लाने के लिए जो मंत्र सृजित होंगे, वे यदि दानवों के हाथ लग गए तो वे उसका विनाशकारी उपयोग कर सकते हैं। तब ब्रह्मा जी ने कहा कि आप इन मंत्रों को शापित कर दीजिए, ताकि भविष्य में इनका उपयोग न हो सके। नारद जी ने कहा कि यदि ऐसा हुआ तो फिर इन मंत्रों का शुभ के लिए कभी उपयोग नहीं हो पाएगा। तब भगवान शिव ने ही उपाय बताते हुए कहा कि यदि इन शापित मंत्रों से पूर्व कुछ विशेष मंत्रों का जाप किया जाएगा तो ये मंत्र शापमुक्त होकर परम कल्याणकारी हो जाएंगे। इसलिए दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पूर्व कुछ विशेष मंत्रों का पाठ किया जाता है, ताकि महाशक्ति के आराधन के ये मंत्र परम कल्याणकारी हो सकें।
नव अहोरात्र के पांच दिवस महाशक्ति स्वावलंबन साधती हैं। शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा और स्कंदमाता स्वरूप महाशक्ति के स्व के सामथ्र्य से जुड़ते हैं फिर छठवें दिन वे कात्यायनी रूप में आज्ञा चक्र में स्थित होकर सातवें दिन कालरात्रि अथवा काली के रूप में प्रकट होती हैं। महाशक्ति का यह स्वरूप परम स्वाधीन है, लेकिन यही परम स्वाधीनता दुष्टों का विनाश करके आठवें दिन महागौरी के रूप में लौटती है तो जगत का स्वाभिमान बन जाती है। यात्र आगे बढ़ती है तो अपने अष्ट रूप में स्वावलंबन स्वाधीनता और स्वाभिमान को साधते हुए जब महाशक्ति नौंवे दिवस सिद्धिदात्री स्वरूप धारण करती हैं तो यह स्वरूप समस्त साधना का शुभ साधता है और साधक को परम तक सौंप देता है।
चैत्र नवरात्र की पूर्णता पर महाशक्ति जब सिद्धिदात्री स्वरूप धारण करती हैं, तब यह तिथि रामजन्म की तिथि भी बनती है। राम नवमी चैत्र नवरात्र की पूर्णता पर आकार लेती है। समस्त सृष्टि अपनी साधना का सुफल प्राप्त करने के लिए जड़-चेतन का भेद त्यागकर मुखर हो उठती है, क्योंकि यह दिवस परम के संभव होने का दिवस है। नवरात्र अपनी यात्र में स्वावलंबन, स्वाधीनता और स्वाभिमान को साधते हुए पूर्णता पर पहुंचता है तो जड़ और चेतन को हर्ष से भर देता है और परम के प्रकट होने की भूमिका भी बन जाता है।
मार्ग, यात्रा और लक्ष्य का संधान करते नव अहोरात्र न सिर्फ स्वावलंबन, स्वाधीनता और स्वाभिमान का संदेश रचते हैं, बल्कि अपनी यात्र की पूर्णता पर वह सौंपते हैं, जो जीवन का परम लक्ष्य है। महाशक्ति ने जनक नंदिनी मां सीता की स्तुति सुनकर जो वरदान दिया, वह भी यही कहता है कि साधक उस सहज और सुंदर को पा जाए, जो जीवन का परम लक्ष्य है। गोस्वामी तुलसी दास ने इसे सुंदर छंद में बांधते हुए लिखा :
मन जाहि राचेउ मिलिहि सो बर सहज सुंदर सांवरो
करुणा निधान सुजान सील सनेहु जानत रावरो
एहि भांति गौरी असीस सुनि सिय सहित हिय हरषी अली
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली।।
महाशक्ति की उपासना का पर्व नवरात्र सभी को सहज सुंदर सांवरे तक ले जाए, यही इस पर्व का संदेश है। यही इसकी सार्थकता और पूर्णता भी है। वह पूर्णता, जो अपनी पूर्णता में से नवपूर्णता रचती है, पुन: पुन:।
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